Tuesday, December 7, 2021

इफ़्फ़ी यात्रा 2021 गोआ

इफ़्फ़ी यात्रा गोआ 2021

गोआ से हरीश शर्मा


और देखते सुनते 8 दिन का सफर खत्म हुआ इन आठ दिनों में बहुत कुछ नया देखने सीखने को मिला। सबसे विशेष रहा अमृत महोत्सव के चलते 75 चुने हुए खास प्रतिभाशाली प्रतियोगी। अब देखना यह है कि अगले साल इनमें से कितने अपने किसी नये project से 53वें इफ़्फ़ी का हिस्सा बनेंगे। 

सरकार को भी चाहिए किसी माध्यम से इनकी मदद की जा सके। एनएफडीसी या पीआईबी से यह लोग सीधे जुड़ पाये। हालाँकि यह सबसे कठिन है। साथ ही क्या अगले वर्ष नये 76 प्रतिभाशाली लोगो का चुनाव होगा । फ़िलहाल मन्त्री जी या पीआईबी ने इस विषय मे कुछ नही कहा है कह देते तो लोग अभी से तैयारी करते अधिक लोग शामिल होते चुनाव कठिन होता।


अंतिम दिन सुनकर अच्छा लगा जब सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा ने कहा फ़िल्म निर्माताओं को भारतीय संस्कृति और परम्पराओ पर फ़िल्म बनानी चाहिए एनएफडीसी और अन्य आर्थिक सहयोग ऐसी फिल्मों को उपलब्ध कराया जायेगा। इस पर मेरा कहना है कि मंत्री महोदय पिछले 7 साल की 7 इसलिए कि 7 साल से उनकी सरकार है फिल्मों की list एनएफडीसी से मंगा कर देख लीजिए तो आपको समझ आ जायेगा कि किस तरह की संस्कृति और परंपराओं को यह संस्थान बढ़ावा दे रही है। 

मन्त्री महोदय को यह भी याद दिलाना है कि एक संस्था चिल्ड्रेन फ़िल्म सोसायटी ऑफ इंडिया भी है उसकी भी खोज ख़बर लेते रहे। एनएफडीसी और बाल चित्र समिति की चर्चा फ़िल्म समारोह से कुछ पहले ही सुनने को मिलती है साल भर यह क्या करती है इसकी कोई खबर नही होती।

जापानी फ़िल्म ring wandering को सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के लिये गोल्डन पिकॉक अवार्ड मिला इसमें 40 लाख रुपये मिलते है मेरे विचार से सभी धनराशि को आकर्षक बनाने की आवश्यकता है सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के लिये एक करोड़ रुपया मिलना चाहिये उसी प्रतिशत में सभी अवार्ड की धनराशि बढ़नी चाहिए अगले वर्ष से। 

किस को क्या मिला वो सब पढ़ चुके है मेरा कहना है इन फिल्मों को आम लोग कहाँ देख सकते है। जैसा मैंने पिछली बार भी लिखा एक पखवाड़े में दूरदर्शन पर इफ़्फ़ी फ़िल्म प्रदर्शित होनी चाहिए और उनका प्रचार प्रसार भी जोर शोर से होना चाहिए।

मंत्री जी ने कहा करीब सभी OTT Platforms ने इफ़्फ़ी में पहली बार सहभागिता दिखाई यह अच्छी बात है लेकिन किसी ने कोई आश्वासन दिया चुनी हुई या पुरुस्कार प्राप्त फिल्मों को हम अपना प्लेटफार्म देने को तैयार है वो हमसे संपर्क कर सकते है। यह तो निश्चित है चुनी और पुरुस्कृत फिल्में सर्वश्रेष्ठ होती है तो उन्हें ऐसा प्रस्ताव देने में संकोच नही होना चाहिए। पीआईबी को इस दिशा में कुछ करना चाहिए।

नवभारत टाइम्स के पूर्व फीचर संपादक और ज्यूरी सदस्य सुरेश शर्मा सहित कई लोगो की माँग कि वर्तचित्र और लघु फिल्मों के लिए कोई विशेष प्लेटफार्म होना चाहिए सरकार को ही इसमें पहल करनी चाहिए ऐसा मेरा मानना है वरना यूट्यूब तो जिन्दाबाद है ही मानसिक संतुष्टि के लिए। आज नही तो कल पैसे मिलने की भी उम्मीद होती ही है।

मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने फिर से अपनी माँग दोहराई फ़िल्म सिटी बनाने की। लेकिन मेरा मानना है यह इतना आसान नही है गोआ में। देश विदेश के सबसे आकर्षक पर्यटन स्थल पर सबसे बड़ी दो समस्याएं है पहली टैक्सी दूसरी मोबाईल नेटवर्क जिस पर्यटन स्थल पर आज की सबसे जरूरी चीजें सरकार उपलब्ध नही करा पा रही है उस प्रदेश में फ़िल्म सिटी ? वैसे भी गोआ के लोगो को समझाना आसान नही है फ़िल्म सिटी के लिए गोआ में कम से कम 300 एकड़ जगह तो चाहिए होगी। यानि असम्भव।

खैर इफ़्फ़ी की बात कर लेते है एक दिन देखा एक स्टॉल में ईवीएम मशीन रखी है पता चला इफ़्फ़ी का लाभ उठाते हुए 2022 के गोआ विधानसभा चुनाव की जागरूकता को ही अन्जाम दे ले। लोगो ने दिलचस्पी भी ली ।

पिछली बार जब मैं इफ़्फ़ी गया था तब एक दो स्टॉल गोआ के परंपरागत सामान के भी लगे थे उन सामानों को गोआ के स्थानीय कलाकार बनाते थे। इस बार वो नही थे उस स्टॉल के होने का फायदा यह था कि इफ़्फ़ी में आये लोगो को गोआ की याद में कुछ लेना हो तो आसानी होती थी और स्थानीय कलाकारों को आमदनी का जरिया मिलता था। 

इस बार किंग फिशर का स्टॉल नही था दूसरी बाटली का था। अब किंग ही नही तो यह तो होना ही था लेकिन किंग फिशर बाजार में उपलब्ध है और Heineken ने किंगफिशर को अपने सानिध्य में ले लिया है।

इतिहास को छुपाया नही जा सकता उसी कड़ी में बंगाल में एक ही रात में 15000 लोगो का कत्लेआम कर दिया गया sainbari डॉक्यूफीचर, इसी सच को ईमानदारी से दिखाया गया है । इस पैनोरमा खंड की महत्वपूर्ण फ़िल्म को अधिक दर्शक वर्ग मिले इसकी जवाबदारी पीआईबी की होनी चाहिए।


वैश्विक महामारी lockdown के समय को भी फिल्मकारों ने अपनी फिल्मों का हिस्सा बनाया है।हिन्दी फीचर अल्फा बीटा गामा ऐसी ही एक फ़िल्म है 1 करोड़ से भी कम लागत की फ़िल्म को कोविड समय में एक फ्लैट में फंस गये पति पत्नि और वो की कहानी है पति पत्नी अलग होने वाले है वो से पत्नी शादी करने वाली है और तीनों एक फ्लैट में 14 दिन फंस जाते है। अर्जेंटीना की फ़िल्म Unbalanced,अनंत महादेवन की लघु फ़िल्म The Knocker उसी श्रृंखला की फ़िल्म है।

आमतौर पर डरावनी फिल्में किसी फिल्म समारोह का हिस्सा नही होती है ऐसी फिल्मों के लिये अलग से बहुत से अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह होते है लेकिन इफ़्फ़ी में नुशरत भरउच्चा की फ़िल्म छोरी प्रभाव छोड़ती है।

इफ़्फ़ी में शाम ढले पांच संगीतकारों का बैंड कोंकणी पुर्तगाली और हिन्दी फिल्मों के गीत संगीत से स्वरलहरियों से सबका स्वागत करते है। उपस्थित जन भी भरपूर सम्मान देते फ़ोटो खिंचाते। इस बैंड का अलग ही आकर्षण रहा।

2 दिन बाद इफ़्फ़ी में फिल्मी दर्शकों की संख्या इतनी बढ़ गई कि आयोजकों को 50% की जिद छोड़नी पड़ी और शत प्रतिशत टिकट देने पड़े करीब सभी फिल्में हाउस फूल रही। किसी समारोह की सफलता का पता इसी से चलता है । लेकिन मास्टर क्लास के लिए यह व्यवस्था क्यों नही की गई समझ से परे है।

खेल फिल्मों को भी इफ़्फ़ी में बहुत पसन्द किया गया। इस कड़ी में चार फिल्में दिखाई गई। यह फिल्में थी Rookie, कोरिया की fighter, तीसरी फिल्म थी The Champion of Auschwitz सच्ची घटना पर आधारित है नाज़ी कैम्प में फंसे मुक्केबाज टेडी की कहानी है अद्भुत।

पूरे इफ़्फ़ी समारोह के दो मुख्य आकर्षण रहे पहला इफ़्फ़ी प्रांगण के बाहर वाली करीब पूरी सड़क में बहुत से स्टॉल लगाये गए इसकी खूबसूरती अंधेरा होने के बाद ही दिखती थी। बिजली की रोशनी की शानदार सजावट पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण रही।

दूसरा आकर्षण थी दक्षिण भारत की सुपरस्टार सामंथा, फैमली मेन द्वितीय के बाद हिन्दी दर्शक भी उन्हें न सिर्फ पहचानने लगे है बल्कि उनके अभिनय को भी पसन्द किया। लेकिन इफ़्फ़ी में आकर्षण थी उनकी लाल चटक साड़ी और उनकी खूबसूरती। सबसे अधिक भीड़ भी उन्हें ही देखने के लिये लालायित थी।

पहली बार इफ़्फ़ी में एक गढ़वाली फ़िल्म सुनपत दिखाई गई 35 मिनट की इस फ़िल्म के निर्देशक राहुल रावत और निर्माता रोहित रावत इफ़्फ़ी में थे। राहुल ने बताया उत्तराखंड के 1500 से अधिक गाँवो से इतना अधिक पलायन हुआ कि यह सभी गाँव भुतहा लगते है।

यह समस्या आज की नही है मैं जब 1989/90 में पिथौरागढ़ में रहता था उस समय मैं दूरदराज के गांवों में बतौर पत्रकार गया था। कई गाँव तो ऐसे देखे जिसमें एक भी इंसान नही था। जो लोग उत्तराखंड छोड़कर चले गये वो वापस नही आते । जो विदेशों में बस गये वो तो फिर भी पाँच सात साल में एक बार आ जाते है लेकिन देश के विभिन्न नगरों में स्थापित हो चुके लोग अधिक व्यस्त है। सिवाय अभिनेता हेमन्त पाण्डेय के जो हर वर्ष ही चार बार पिथौरागढ़ हो आते है।

सुनपत फ़िल्म सबको देखनी चाहिए। शायद पलायन कर चुके लोग कभी कभार घूमने ही आ जाये।

अगले साल फिर मिलेंगे इफ़्फ़ी की कहानियों के साथ।

हरीश शर्मा

Friday, November 26, 2021

IFFI21 गोआ यात्रा



इफ़्फ़ी यात्रा 21

20 नवम्बर 21 इफ्फी का पहला दिन मैंने अपनी बेटी और पत्नी मीनाक्षी को inox पणजी भेजा कि देख कर आईये अच्छा लगेगा बेटी ईहा का जन्मदिन भी था 20 को। 

साउथ गोआ से नार्थ गोआ जाना अपने आप में आसान नही और वापस आना तो अधिक दिक्कत वाला है। यदि गोआ की दादागिरी टैक्सी से जाओ तो करीब 2.5-3 हज़ार लगते है एक तरफ से, वापसी में टैक्सी मिलेगी कहना कठिन है इसलिये आसान यहीं है जिस टैक्सी से जा रहे है उसी से विनती कर लीजिये भाई 7-8 बजे वापस आना है आ जाना यदि टैक्सी उस समय उस तरफ हुई तो आ ही जाते है। 


गोआ आने वालों को टैक्सी और उनके रेट सबसे बड़ा संकट है उन लोगो के लिए ईमानदार सलाह है goa miles app down load कीजिये रेट के हिसाब से यह सबसे सुविधा जनक है। 

20 नवंबर को दोनों इन्ही की टैक्सी से गये 1 हज़ार रुपये में। लेकिन कोशिश करने के बाद एक घण्टे बाद यह टैक्सी मिली। बरसात बहुत अधिक थी। जब inox वो venue जहाँ यह iffi समारोह 20 से 28 नवम्बर तक हर वर्ष होता है। 

जब वहाँ पहुँचे मुझे फोन किया यहाँ तो कुछ भी नही है। बोर्ड लग रहे है स्टॉल बन रहे है बहुत लोग भी नही है। यहाँ जो कुछ होगा कल यानि 21 से होगा। आज तो श्यामा प्रसाद मुखर्जी स्टेडियम में उदघाट्न है। हैम लोग कही बाहर खाना खाने जा रहे उसके बाद उसी टैक्सी को बोल दिया है। 6 बजे आयेगी टैक्सी तो घर आते है। वापसी में 1 घंटे का सफर 3 घण्टे में पूरा हुआ कई जगह रास्ता oneway है बरसात भी बहुत थी सड़क पर जाम लग गया था

अगले दिन 21 नवम्बर को मैंने समारोह में जाने का विचार किया 10 बजे तैयार हो गया था लेकिन टैक्सी मिली 11.30 बजे। उत्तराखंड देहरादून के बड़े अंग्रेजी अखबार गढ़वाल पोस्ट और मेलबॉर्न ऑस्ट्रेलिया के अखबार the South asia time के लिए मैं iffi cover कर रहा हूँ उन्ही के पत्र के कारण मेरा मीडिया का पास बन गया था।

करीब एक घण्टे में inox पहुँचा। उसी टैक्सी से विनती की भाई 7 - 8 बजे मुझे यहीं से ले लेना। 

समारोह स्थल के गेट से पहले बाएं हाथ पर एक स्टॉल लगा था जहाँ से मैंने अपना आई कार्ड लिया वहीं पर डेलीगेट के पास भी बन रहे थे यदि आपको एक दिन के लिए आना है तो आपका कार्ड 350 रुपये में बन जायेगा। हालाँकि सिवाय कुछ फोटो अंदर खींचने के अतिरिक्त आपको कुछ हांसिल नही होगा वैसे तो एक डेलीगेट को 4-5 फ़िल्म देखने के टिकट मिल सकते है लेकिन चूँकि टिकट online book करने है तो same day टिकट उपलब्ध ही नही होंगे न online न टिकट खिड़की पर । मीडिया के लिए भी यहीं स्थिति है।


खैर मैं अंदर गया किसी ने मेरा कार्ड नही देखा कार्ड पर कही नही लिखा मेरा कार्ड मीडिया का है। कोड बना है स्कैन करेंगे तो details पता चलेंगी की कार्ड गले में लटकाने वाला कौन है। 

एक बैग सभी डेलीगेट और मीडिया को दिया जा रहा है जिसमे एक छोटी सी कितबिया और पेन है। रात जब घर आया तो बेटी ने हंसकर कहा आज के डिजिटल दुनियां में पेन पैड कौन देता है इन्हें iffi लिखा हुआ मास्क देना चाहिए था जो आज की जरूरत है।

पहले भी बैग मिलता रहा है लेकिन सबसे जरूरी चीज मेरे हिसाब से उस बैग में रहती थी एक किताब जिसमें चुनी हुई सभी फिल्मों की निर्माता निर्देशक अभिनेताओं की जानकारी होती थी। निर्माताओं के नम्बर होते थे। अब यह जानकारी नदारद है। ऑनलाइन वो सुविधा उपलब्ध है Iffi app down load कर लीजिये।

मेरे पास भी कोई टिकट नही था मैं कोई फ़िल्म नही देख पाया। पूरा इफ्फी समारोह सजाया बहुत खूबसूरत है फ़ोटो खींचने के लिए खूब मौके है। 


गेट से अंदर आने के बाद मैं सीधा उस भवन में गया जहाँ मीडिया रूम होता था सुरक्षा गार्ड ने बताया वो रूम बन्द है ।

फिर मैं inox की तरफ गया अच्छा लगा कुछ गोल टेबिल लगी थी कुर्सी के साथ बैठने की जगह थी। इसको फूड़ कोर्ट का नाम दिया गया है। वहाँ सिर्फ 8 छोटे फ़ूड स्टॉल लगे है। पेट भरने के लिये ठीक है कोई बहुत बड़ा आकर्षण नही है। हाँ बीयर पीने वालों के लिए भी स्टॉल है गोआ में यह जरूरी भी है ऐसा लगता है। 


Inox के ठीक सामने खड़ा था जब कुछ हलचल हुई मैंने देखा सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर बाहर निकल रहे है। मैं उनसे कहना चाहता था कि वो फ़ूड कोर्ट, मीडिया रूम भी आये देखे क्या सुविधा है। लेकिन मैं दूर था लेकिन मैं लिख तो सकता ही हूँ। 

इतने में मैंने अपने मित्र अतुल गंगवार और विष्णु शर्मा को अपनी तरफ आते देखा। अतुल की iffi ज्यूरी में अच्छी पैठ है। विष्णु पहली बार ज्यूरी सदस्य बने है। अतुल बहुत पतले हो गये है या कहे फिट हो गये है। उन्होंने कहा 1 बजे पैनोरमा ज्यूरी की प्रेस कॉन्फ्रेंस है। मुझे जाना है । वो चले गये। 

विष्णु अपनी पत्नी के साथ पहली बार गोआ आये है तो उनके साथ कॉफी पीने बैठ गये। उन्हें मैंने बताया कि क्या देखें क्या ख़रीदे। 

1 बजे हम भी मीडिया रूम पहुंचे पैनोरमा ज्यूरी मंच पर जम चुकी थी। वहाँ पैनोरमा खण्ड के अध्यक्ष फ़िल्म क्षेत्र के बड़े नाम एस वी राजेन्द्र राव व अन्य सदस्य थे। बात बहस चल रही थी जो फिल्में इफ्फी में चुनी जाती है जिन्हें अवार्ड मिलता है उन्हें देखने के लिए प्लेटफॉर्म कहाँ है सिनेमाघरों तक वो फिल्में आती नही कोई चैनल दिखाता नही। राव साहब बोले हम सरकार के माध्यम से दबाब डलवा रहे है कि ott platform हमारी फिल्में वृत्त चित्र लघु फिल्में दिखाए। 


मुझे 10 वर्ष पहले की ऐसी ही प्रेस कॉन्फ्रेंस याद आ गई तब भी यहीं बात बहस चल रही थी उससे पहले भी उसके बाद भी और अब आने वाले सालों में भी यह बात बहस चलती रहेगी। 

मेरा कहना है यह बहस बैमानी है जब दूरदर्शन या कोई भी सरकारी चैनल इन फिल्मों को नही दिखा सकता तो कोई अन्य चैनल क्यों दिखायेगा। अब यूट्यूब है जहाँ आप अपनी फिल्में दिखा सकते है यदि आपकी फ़िल्म अच्छी है तो यूट्यूब का दर्शक वर्ग बहुत बड़ा है। दूरदर्शन भी राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह और iffi में चुनी हुई फिल्मों लघु फिल्मों और वृत चित्रों को दिखाता था पैसे भी देता था। अब की क्या स्थिति है मुझे पता नही।

इफ्फी में चुनी हुई फिल्मों को अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में अच्छी प्रतिक्रिया मिलती है अच्छी फिल्में वृत चित्र लघु फिल्में बाहर के देश खरीद भी लेते है। लेकिन मेरा मानना है समारोह में चुनी फिल्मों से जो सुकून मिलता है वो अगली लघु या वर्तचित्र फ़िल्म बनाने की तैयारी कराता है।

https://youtu.be/-mVNTtRzF84

जैसे मैने भी एक लघु फ़िल्म निर्मित की थी आखिरी मुनादी वर्ष 2001 में, वो फ़िल्म करीब 10 बड़े फ़िल्म समारोह में चुनी गई थी। अमेरिका के जर्सीशोर फ़िल्म समारोह में चुनी गई थी जिसके चलते हमारा 10 साल का वीजा लगा। हालाँकि हमें उस फिल्म से कोई कमाई नही हुई लेकिन ग्राफिस एड्स जैसी बड़ी विज्ञापन कम्पनी  के मुकेश गुप्ता ने हमें उस समय 2 लाख रुपये दिए थे फ़िल्म निर्माण के लिए । शार्ट फ़िल्म जब भी यूट्यूब पर देखता हूँ रोंगटे खड़े हो जाते है गुरुर होता है हमनें इतनी शानदार फ़िल्म बनाई है। मित्र एहसान बख़्श ने एक शानदार फ़िल्म का निर्देशन किया। 


खैर आगे बढ़ते है जब हम घूम रहे थे तो विष्णु ने मुझे बताया दिखाया तीन चार लोग एक जगह बैठे बात कर रहे थे मुझे बिल्कुल नही लगा यह लोग फिल्मों से जुड़े हुए होंगे । विष्णु उनसे मिले मुझे मिलाया और बताया कि यह निर्देशक है यह बच्चा और दूसरे व्यक्ति के लिए बोले बहुत अच्छे अभिनेता है इनकी फ़िल्म Koozhangal भारत की तरफ से एकेडमी अवॉर्ड्स के लिए चुनी गई है। मैं आश्चर्य में था फ़ोटो खींचा कर मैं कोने में गया मैंने फ़िल्म के विषय मे पढ़ा वीडियो देखा। वो सरल फ़िल्म है लेकिन विशुद्ध सिनेमा है। मुझे मौका मिलेगा तो इनसे बातचीत आप लोगो के लिए करूँगा।

उसके बाद मीडिया रूम गया मीडिया रूम यानि जहां तमाम मीडिया वाले बैठ कर कम्प्यूटर पर खबरे लेख लिखकर भेजते है लेकिन इस रूम को देखकर अफसोस हुआ दो तीन छोटे कमरों को मीडिया रूम का नाम दे दिया गया है । अब मैं चाय कॉफी तलाशने लगा मैंने देखा एक कोने में एक छोटी सी मशीन थी एक लड़का वहाँ बैठा चाय कॉफी बना रहा है। मैंने काफी बनवाई तब तक एक पत्रकार आये लड़के से बोले चाय दो और बिस्किट का पैकेट दो तब पता चला बिस्किट भी है। तब मुझे पुराना मीडिया रूम और उससे लगा किसी फाइव स्टार होटल का कॉफी रूम याद आया। लेकिन जो भी उपलब्ध रहा होगा वहीं सुविधा दी इफ्फी ने। 


मैंने देखा पीआईबी का एस एम एस था 4.30 बजे 75 प्रतिभाशाली चुने हुए प्रतियोगियों में से पाँच के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस होगी। मैं उसमे चला गया वहां उन लोगो से बात की । अधिकतर विजेताओं ने बताया कि उन्होंने अपने प्रोजेक्ट मोबाइल से बनाये है खुद ही एडिट की थी। एक युवा शुभम शर्मा  जिनके दो प्रोजेक्ट 75 प्रतिभाशाली प्रतियोगिता में चुने गये जिसमें एक मीठा खिलौना और एक म्यूजिक वीडियो के माध्यम से मेरी प्रतिभा को सम्मानित किया गया। उनका मानना है इस अवॉर्ड से जोश बढ़ा है अगले वर्ष मेरे निर्देशन में बने वृत चित्र का चुनाव हो वो iffi में दिखायी जाए इस सपने को इस अवार्ड ने पंख लगाये है। 

                                  शुभम शर्मा


Wednesday, November 17, 2021

SPENCER,FILM ON PRINCESS DIANA,TO RELEASE IN INDIA ON 19TH NOVEMBER


SPENCER, FILM ON PRINCESS DIANA, TO RELEASE IN INDIA ON 19TH NOVEMBER  

Impact Films announces the theatrical release of the current year’s one of the most talked-about and highly rated English language films, titled SPENCER by Pablo Larrain across the  Nation on 19th Nov. It features Kristen Stewart in the lead role of Princess Diana and Jack Farthing as Prince Charles, beautifully supported by Sally Hawkins and Timothy Spall.  

Spencer concentrates on three turbulent days in the life of Diana during the Christmas of 1991  where Diana and her family are staying at Sandringham, a well known royal tradition. Over  Christmas Eve, Christmas Day and Boxing Day, Diana realises that her marriage is breaking down and doesn’t want to be the future queen. The biopic gives the audience a glimpse into the character of Princess Diana whizzing through many official engagements she attended, a frosty dynamic with the royal family, and plenty of emotional scenes exploring the late Princess’s vulnerability and how she struggled to fit in. 

The film debuted at the Venice Film Festival. It then screened at several renowned film festivals like Toronto, Telluride, New York, etc., before getting released in the United States and the United Kingdom on 5th Nov. It has already emerged as the frontrunner in the upcoming Academy Awards for the Best Actress for Kristen Stewart. It is likely to land nominations in some other categories as well. On playing Diana, Kristen Stewart says,” At that moment, we’re not trying to depict what happened in there, but it is, maybe, an idea of what happened inside of her.” 

Chilean director Pablo Larrain has created several flicks with strong female characters and is known for Oscar-nominated film Jackie. Pablo, who has been fascinated and had been thinking about making a film on this subject for a while, believes, ”Everything our Diana sees is a reflection of her memories, her fears and desires and maybe even her illusions.” 

SPENCER is a biopic that excels in every filmmaking department, including Script by  Steven Knight, Cinematography by World famous Claire Mathon, Costume Designer  Jacqueline Durran, Composer Jonny Greenwood, Makeup & hair design by Wakana Yoshihara and Production Design by Guy Hendrix Dyas. The film was shot entirely in Germany & UK.  

SPENCER is being brought to Indian Screens through Distribution and Production House  Impact Films. They have made a name for themselves as the leading Distributor of Independent  Award Winning World Cinema titles in India like Parasite, Another Round, A Fantastic  Woman, Capernaum, Portrait of a lady on Fire, etc. According to its founder Ashwani  Sharma, “Lady Diana is so popular in India for decades that SPENCER is an obvious choice not only for fifty-year-olds but also a perfect vehicle for Millenials & Generation Z to know about this piece. Of history which is so sensational and magnificent.” 

Here is the link to the trailer of the film: SPENCER - Official Indian Trailer| Kristen Stewart| Pablo  Larrain| In Indian Theatres this November - YouTube

https://www.youtube.com/watch?v=tGvZOpD33z4


-Harish Sharma

H. S. Communication

9967788500 | harishsharma1@gmail.com

Tuesday, November 9, 2021

इफ्फी - अन्तराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह गोआ



इफ्फी -  अन्तराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह गोआ 

इफ्फी यानि इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया जो हर साल गोआ में होता है मैंने इस फ़िल्म समारोह में बतौर पत्रकार 6-7 साल शिरकत की है। 2 साल बतौर डॉक्यूमेंट्री और शार्ट फ़िल्म निर्माता निर्देशक इस समारोह में आया था। दो साल कुछ फिल्मों का प्रचार करने भी गया। 

इस फ़िल्म समारोह का अपना ही आकर्षण है जो एक बार आ गया वो हर साल आना चाहता है। चाहे आईनॉक्स और कला भवन में दिखाई जाने वाली देश विदेश की फिल्में हो या एनएफडीसी का तीन दिवसीय जे डब्ल्यू  मैरियट में होने वाला समारोह हो दोनो ही विशेष है। 

दोनो समारोह में देश विदेश के तमाम सितारें आते रहे है उनसे मिलना उनको सुनना शानदार अनुभव रहा है। हालांकि मुझे पहले शिकायत थी कि एनएफडीसी के समारोह में हर साल निमंत्रित सितारें और पत्रकारो में बदलाव क्यों नही होता । हर साल गिने चुने वहीं फ़िल्म निर्माता निर्देशक सितारें आते है। 

कुछ वर्षों के अनुभव के बाद लगा सितारों को बुलाना आसान भी नही है। जो उपलब्ध हो जाते होंगे वही आ पाते होंगे। लेकिन निमंत्रित पत्रकारो में कई तो ऐसे रहे है जिन्हें पत्रकारिता छोड़े हुए भी जमाना हो गया लेकिन गोआ में तीन दिन का सुख उन्हें मुफ्त मिलता है वो भी सपरिवार। 

लेकिन उम्मीद है सरकार के बदलाव ने बहुत कुछ बदलाव किए होंगे । इस वर्ष कई सालों के बाद शामिल हो रहा हूँ तो पता चलेगा क्या कुछ बदला है। 

एनएफडीसी और इफ्फी समारोह में एक बुनियादी फर्क है वो यह कि इफ्फी सबके लिए है आप और मैं इसमें आसानी से जा सकते है गोआ घूमने आया पर्यटक भी प्रतिदिन मिलने वाला टिकट खरीद कर इसका आनन्द उठा सकता है लेकिन एनएफडीसी में शामिल होना सबके बस की बात नही है तीन दिन की डेलीगेट फीस 5500 से 7000 रुपये है। और इफ्फी की 1180 रुपये 8 दिन के लिये। हाँ विद्यार्थियों के लिए इफ्फी रजिस्ट्रेशन फ्री है वो ऑनलाइन बुकिंग कराकर 4 फिल्मों के टिकट प्रतिदिन पा सकते है।

एनएफडीसी का तीन दिवसीय फ़िल्म बाज़ार 20 से 22 नवम्बर  ओर 8 दिन का इफ्फी 20 से 28 नवम्बर तक चलेगा हर साल यही तिथि निश्चित है लेकिन कोविड के चलते पिछले साल का समारोह 2021 के जनवरी में हुआ था। इस बार यह 52वाँ समारोह है।

मीडिया के लिए रजिस्ट्रेशन फ्री है ऑनलाइन कुछ औपचारिकताओं के बाद आपको कार्ड मिल जायेगा। फ़िल्म देखिये दुनियाभर की। मुलाकात कीजिये फ़िल्म सितारों और निर्माता निर्देशको से। पुराने परिचित अपरचित पत्रकारों से । आईनॉक्स हाल के बाहर लगे विभिन्न खाद्य स्टालों से अपनी पसंद का खाना खाइये खिलाइये। किंगफिशर बीयर का स्वाद लीजिये, अब वो स्टाल लगता है या नही मुझे नही पता। 

मीडिया के लिये एक हाल में कई कम्प्यूटर की व्यवस्था की जाती है जहाँ से पत्रकार अपनी रिपोर्ट अपने यहाँ भेज सकते है मुझे उम्मीद है कम्प्यूटर की जगह अब लेपटॉप ने ले ली होगी वैसे तो अब फोन ही इतने काबिल है कि उनसे ही आप अपनी स्टोरी भेज सकते है। 

वैसे मेरी पसन्दीदा जगह इस समारोह में मीडिया हॉल के बाहर ताज या किसी पंचतारा होटल द्वारा मीडिया के लिए चाय काफी बिस्किट की भरपूर व्यवस्था की जाने वाली रही है। काफी की चुस्कियों के साथ मीडिया मित्रो के साथ गपशप मुलाकाते मज़ेदार रहती है। 

एक बात जो मुझे हमेशा प्रभावित करती रही है वो है गोआ के मुख्यमंत्री का इफ्फी में आना वो भी बिना किसी तामझाम के न कोई सुरक्षा न कोई प्रोटोकाल । जब मैं पहली बार गोआ फेस्टिवल में गया तो मैंने उस समय के मुख्यमंत्री दिगंबर कामत को अपने साथ वाली मेज पर अकेले भोजन करते हुए देखा यह मेरे लिए किसी अजूबे से कम नही था । उनको हर साल देखता एक दो बार बात भी हुई लगा हमारे ही बीच का कोई व्यक्ति है। 

बाद में सत्ता परिवर्तन हुआ तो लगा उस समय के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर आयेंगे क्या। मेरे लिए सुखद आश्चर्य था मनोहर पर्रिकर तो कामत जी से दो कदम आगे निकले वो साथ ही बैठ जाते खाना उनकी तरफ से ही होता यानि वो अपनी जेब से पैसे निकाल कर देते थे अपने भी साथ बैठे मीडिया के खाने के भी।

उनकी सुरक्षा मुख्य गेट के पास होती थी। उन्होंने गोआ फेस्टिवल में बहुत सुधार किये। 

अब देखना यह है कि क्या वर्तमान मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत अन्य मुख्यमंत्रीयो की तरह हम यानि मीडिया का हिस्सा बनते है कि नही।

हरीश शर्मा



Thursday, October 14, 2021

बरेली के खिलाड़ी - अभय सिंह

बरेली के खिलाड़ी 

यह शायद 1984 - 85 का फोटो है एलबम से मिला तो लगा आज की पीढ़ी को पता चलना चाहिये कि बरेली के खिलाड़ी कैसे रहे है लिहाज़ा एक श्रृंखला शुरू कर रहा हूँ "बरेली के खिलाड़ी" मित्रों से गुज़ारिश है पुराने फ़ोटो हो तो साझा करें। 

इस श्रृंखला में सबसे पहले वैसे तो शुरुआत पंडित जी से होनी चाहिए थी आप सोच रहे होंगे पण्डित जी कौन ? 

यह क्रिकेट के पंडित है सब उन्हें प्यार से इसी नाम से बुलाते है नाम है अतुल मिश्रा 1980/1990 के दशकों में अतुल मिश्रा बहुत बड़ा नाम था लेकिन उन पर चर्चा फिर कभी अभी तो इस फोटो के पहले खिलाड़ी की बात करते है। बाकी दो लोग है राजेश शर्मा और मनोज दीक्षित इनकी चर्चा अगली दफा।

अभय सिंह


अभय जन्मजात खिलाड़ी था, था इसलिए कि वो आज हमारे बीच नही है एक दर्दनाक हादसे में हम सब को बेहद कम उम्र में ही अलविदा कह गये थे। कई दिनों से वो मेरे meditation में सपनों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा कर कुछ कहना चाह रहे है लेकिन समझ नही आया, तीन चार दिन पहले बेटी ने कुछ पुराने फ़ोटो दिखाए तो लगा social मीडिया के माध्यम से आप सबको बताना चाहिए। 

अभय से मेरी मुलाकात बरेली स्टेडियम में ही हुई थी उनका घर स्टेडियम की दीवार से लगा हुआ था उनकी छत से हम स्टेडियम की गतिविधियां देख सकते थे।1972/73 में मैंने स्टेडियम जाना शुरू किया था 8/9 साल की उम्र में यही उम्र अभय की रही होगी। हम दोनो उस उम्र में ही अच्छे दोस्त बन गये। हम दोनों में एक बात एक सी थी हम बोलते कम सुनते ज्यादा थे। हम दोनों ही एक दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त थे। वो बहुत सटीक सलाह देता था।

हमनें क्रिकेट ही क्यों चुना खेलना अभय का पता नही लेकिन मैंने तो पिताजी के कारण ही चुना हरेक टेस्ट मैच की कमेंट्री रेडियो में बजती थी वही से रुझान बढ़ा।

अभय ऑलराउंडर था सिर्फ क्रिकेट का ही नही हरेक खेल का। लेकिन मेहनत में उसका विश्वास नही था। यदि वो 50% भी मेहनत करता तो कम से कम रणजी की टीम में जरूर होता।

मुझे याद है वो फुटबाल के एक गोलपोस्ट से दूसरे गोलपोस्ट तक आराम से जेवलिन फेंक देता था और हाई जम्प भी किसी प्रोफेशनल खिलाड़ी की तरह करता था ।

अभी कुछ दिन पहले मेरी बात हमारे पहले क्रिकेट गुरु जी आर गोयल Sir से हुई थी करीब 45/46 साल बाद मुझे तो नही पहचान पाये लेकिन अभय का नाम लिया तो बोले अरे याद है मुझे वो लेगी न। लेगी यानि लेग स्पिनर। वो कमाल का लेग स्पिनर था लेकिन स्पोर्ट्स कॉलेज जाने के बाद वो पूर्णकालिक बल्लेबाज बन गया था । क्रिकेट गुरु भारद्वाज Sir का ब्लू आई बॉय था। 

अभय खेलता था कापी बुक स्टायल से। परफेक्ट डिफेन्स परफेक्ट कवर ड्राइव स्कवायर कट कोई भी शॉट और शानदार फील्डर, स्लीप में भी और दूर कहीं भी। स्पोर्ट्स कॉलेज की किसी भी टीम में वो होता ही था। 


लेकिन मुझे याद आता है वो 10वी क्लास तक ही स्पोर्ट्स कॉलेज में था परिवार में किसी हादसे के चलते शायद उसे कॉलेज छोड़ना पड़ा था। स्वभाव से अभय मस्त मौला था । 

मेरे स्पोर्ट्स कॉलेज से आने के बाद हम बरेली में साथ साथ खेलने लगे थे कुछ बड़े भी हो गए थे करीब 17/18 उम्र के । बहुत याद तो नही है लेकिन सुबह सत्य नारायण उर्फ दद्दा के नेट चलता था दद्दा के बिना बरेली की क्रिकेट का इतिहास अधूरा है लिखूँगा उन पर भी पण्डित जी के पास उनके फ़ोटो होंगे जरूर। 

दद्दा हम दोनों को टीम में रखते थे उन्हें धामपुर शुगर मिल में उनकी टीम से खेलने में मज़ा आता था हम दो महीने में एक दो बार तो जाते ही थे। 

सूद धर्म कांटे के पास एक मकान में हमारे विकेटकीपर मित्र संजू मुखर्जी रहते थे उनके बड़े भाई जिन्हें हम सब दादा कहते थे थम्सअप में बड़ी पोस्ट पर थे उनकी मदद से हमने टीम बनाई थम्सअप इलेविन कुछ महीने या सालभर चली वो थम्सअप टीम हमने कुछ बहुत ही शानदार मैच जीते थे करीब सब में ही अभय का योगदान बेहतरीन था। दो टूर्नामेंट मुझे याद आते है रबड़ फैक्ट्री और नैनीताल के, थम्सअप ने इन जगहों पर अच्छा प्रदर्शन किया था। 

क्रिकेट का जुनून ऐसा था सुबह 5 बजे स्टेडियम पहुँच जाते सुबह भागादौड़ी करते नेट प्रेक्टिस करते सुबह का नाश्ता अभय के यहाँ या स्टेडियम में स्थित बरेली फुटबॉल होस्टल में करते लंच भी 3 बजे फिर मैदान में होते। अभय तो नेट के समय ही आता बैटिंग उसे मिलनी ही थी 3-4 नम्बर उसका ही होता था । उसे जरूरत ही नही होती थी मैच में फर्स्ट सेकेण्ड् डाउन जाता 40- 50 रन बनाता और वापस।

अभय अपने जीजा के बहुत करीब था रसूलपुर- अमरिया- मझोला के बड़े किसान है सर्वदत्त सिंह सब ठाकुर साहेब कहते हैं उन्हें, मैं तो कई बार उनके फार्म हाउस पर गया हूँ। लेकिन एक बार मझोला के एक क्रिकेट टूर्नामेंट में हम पूरी टीम वहाँ गए थे जिसमें बरेली के उस समय के करीब सभी तुर्रम खां गए थे खेलने और सभी जीजा के फार्म हाउस में ही करीब 10 दिन रुके थे ।

मझोला से शायद 6 किलोमीटर है फार्म हाउस हम सब टेक्टरों में बैठकर गए थे। उसी रात पहली बार हम लोग शिकार पर भी गए । लेकिन शुक्र है कोई निरीह जानवर मिला नही वरना मुझे अफसोस होता। उस समय तक हमें पता भी नही था शिकार करना अपराध की श्रेणी में आता है वो तो बाद में सलमान खान के हिरण कांड से पता चला यह अपराध है।

अभय ने मझोला वाले मैच में 50 रन बनाए थे उसे मैन ऑफ दी मैच मिला था। हमनें फाइनल जीता था और फार्म हाउस पर अच्छी दावत हुई थी उस दिन।


अभय को फ़िल्म देखना पसंद था हमने बहुत सी फिल्में साथ देखी। मिथुन चक्रवर्ती उनके पसंदीदा अभिनेता थे। माधुरी श्रीदेवी पसंद थी उसे और स्मिता पाटिल भी।

खाने पीने का कोई खास शौक नही था उसे जो मिल गया खा लिया । चाय पसंद थी उसे। मुझे याद नही कि मैंने उसे कभी भी गुस्सा करते हुए देखा हो । 

एक बार हमें कुछ काम करने का जुनून सवार हुआ हमने एक ट्रांसपोर्ट कम्पनी खोली हम बरेली से माल लादते हल्द्वानी में उतारते पिताजी का सहयोग इस काम में मिला था अभय को पता था मेरी रुचि इस काम में नही है।

 सारा फील्ड का काम अभय ने संभाल लिया। ट्रक में माल लोड करवाना हल्द्वानी जाना माल उतारना वापस आकर फिर वही काम । मुझे कहता पण्डित हरीश शर्मा आप हिसाब किताब करे मेहनत मुझे करने दे। कम्पनी थोड़े दिन चली मैं पिथौरागढ़ चला गया और वही का होकर रह गया। 

एक बार बरेली आया तो अभय को मिलने गया । उसने मुझे खुश ख़बरी दी कि उसको टोपाज में नौकरी मिल गई है संघर्ष के दिन खत्म हुए । उसने मुझे बोला पहली सैलरी पर हम पार्टी करेंगे जब भी तुम पिथौरागढ़ से अगली बार वापस आओगे। मैं बहुत खुश था कि अभय खुश है । मैं वापस चला गया पिथौरागढ़। 


कुछ समय बाद एक दिन सुबह मेघना में पिथौरागढ़ की सबसे बेहतरीन मिठाई की दुकान और रेस्टोरेंट में मेरे घर से फोन आया । जब मैं वहाँ पहुँचा तो मेघना के मालिक मेरे दोस्त राजीव खत्री ने इतनी अजीब सी खबर दी कि बरेली से फोन आया था तेरा दोस्त अभय नही रहा एक दुर्घटना में। इससे आगे मैं कुछ सुन ही नही पाया मैं सदमें में था । मुझे अभी बरेली जाना है मैंने कहा, राजीव ने मेरी हालत देखकर कहा मैं चलता हूँ लेकिन मैंने खुद को संभाला। 

बरेली तक का वो सफर मेरी जिन्दगी का सबसे कठिन सफ़र था मैं सीधे अभय के घर पहुंचा अभय अब बॉडी हो गया था उसकी बॉडी जैसे मेरा ही इंतज़ार कर रही थी । परिवार के कुछ अन्य लोग भी आने थे । जीजा ने बताया कि कैसे करंट लगने से उसने मेरी गोद मे ही दम तोड़ दिया मैं कुछ नही कर पाया। ठाकुर साहब जैसे मजबूत व्यक्ति को मैंने पहली बार इतना लाचार देखा था। 

उस रात मैं और हमारे विकेटकीपर मित्र संजू मुखर्जी अभय की बॉडी के पास बैठ कर सारी रात उसकी ही बात करते रहे। अभय के शान्त चेहरे को देखकर हमें कई बार लगा कि वो अभी उठकर कहेगा अबे तुम दोनो इतनी रात मेरे घर में क्या कर रहे हो लेकिन अफसोस वो नही उठा। 

अभय के घर से 5-7 मिनट की दूरी पर स्थित श्मशान घाट पर जहाँ हम दोनों अक्सर जाते थे  वहाँ जाकर हम खूब बातें करते थे उस शमशान घाट में जाना हम दोनों को अच्छा लगता था । उस दिन भी हम गये थे लेकिन वो मेरे कंधे पर था। जब वह पंचतत्व में लीन हो रहा था तब मैं और संजू पहली बार खूब रोये। 

अभय के चौथे पर बरेली के तमाम खिलाड़ी जुटे थे हम सबने निश्चित किया था कि अभय की याद में हम एक शानदार क्रिकेट टूर्नामेंट करायेंगे अफसोस हम नही करा पाये सभी अपने अपने जीवन संघर्ष में व्यस्त होते गये । मेरा बरेली हमेशा के लिए छूट गया मुझे पता है यदि मैं वहाँ रहता तो अभय सिंह क्रिकेट टूर्नामेंट हर साल होता। 

मुझे आज भी लगता है अभय किसी दिन किसी रूप में मुझे मिलेगा या मिल चुका होगा क्या मैं उसे पहचान पाया या पाऊँगा पता नही। लेकिन हम मिलेंगे जरूर।

हरीश शर्मा

भैया, एक वाकया आपसे बताने से छूट गया क्योंकि आप उसके साक्षी नहीं थे। कौन सा साल था ये तो मुझे याद नहीं है लेकिन इतना याद है कि वो 6 नवंबर के दिन था और उस दिन दीवाली के बाद का अन्नकूट का दिन था। 5 नवंबर को अभय भैया शाम को घर पर आए थे। बड़ी दीदी Kusum Pathak  के बड़े बेटे   Sunny Varun Pathak  का 6 नवंबर के बर्थडे था। तो अभय भैया ने 1 दिन पहले ही Sunny का गिफ़्ट लाकर दे दिया था कि हो सकता है मैं पार्टी में आने में late हो जाऊँ तो दीदी Sunny का ये गिफ़्ट तो आप अभी रख लो।  दीदी ने भी उस समय अभय भैया से कहा था, " अब तो जॉब भी अच्छा लग गया है अभय अब तो शादी कर ले।" 

"दीदी, हाँ अब तो कर ही लूँगा, अब तो वो समय भी निकल ही गया है जो ज्योतिषियों ने बताया था।" (अभय भैया को ज्योतिषियों ने अल्प आयु यानि 26-27 वर्ष की आयु में आकस्मिक मृत्यु का योग बताया हुआ था। वो वही बात की तरफ़ इशारा कर रहे थे।)

और अगले दिन, Suuny के बर्थडे यानि 6 नवंबर को अन्नकूट की वजह से में Dinesh Sharma  , Ramesh Sharma  वाले लगड़े बाबा के मंदिर में अन्नकूट की तैयारियों में सहयोग कर रहा था। तभी वहाँ Susheel Sharma बबलू भैया आये और अभय भैया की उस दर्दनाक हादसे में मृत्यु की बात बताई।  अभय भैया अपने घर में इतने अपने थे कि विश्वास ही नहीं हुआ, मैंने कहा मज़ाक कर रहे हो ना आप? उन्होंने कहा, "नहीं, करंट लगने की वजह से घर मे ही यह हादसा हुआ है। 

उसके बाद अन्नकूट के कार्यक्रम में कहाँ मन टिकता सो उसी समय मैं भी बबलू भैया के साथ अभय भैया के घर गए। 

ऐसा लग रहा था जैसे वो आराम से सुख से सो रहे हैं। मुझे आज भी याद है उस वक्त की फीलिंग्स। ऐसा लग रहा था मानो सब झूठ चल रहा है और अभय भैया अभी उठ कर खड़े हो जाएंगे और कहेंगें, "अरे आज इतने सारे लोग एकसाथ मेरे घर मे ?? क्या हुआ ?? सब ठीक तो है ना?

मेरे भाई नवीन शर्मा का संस्मरण -