जो बरेली में रहते है रहे है ऐसा हो ही नही सकता उन्होने कुमार टाकीज के समोसो का स्वाद न चखा हो। इस बार बरेली आएं तो कुमार के समोसो के बिना रह नहीं पाएं।
मुझे याद है बरेली में मेरी पहली फिल्म कश्मीर की कली थी रात का शो था पिताजी और उनके मित्र जगदीश लाला साथ थे। मेरी उम्र उस समय करीब 10/12 साल की रही होगी।
कश्मीर की कली 1964 में आई थी मेरा जन्म 1964 का है इसका मतलब जब मैंने देखी तो दोबारा तीबारा रिलीज़ हुई होगी।
पहले फिल्में सालो लगी रहती है या दोबारा भी रिलीज़ होती थी । हमने मध्यांतर तक ही फिल्म देखी पिताजी समोसे ले आएं पहली बार तभी कुमार के समोसे से पहचान हुई थी । उसके बाद कितनी ही फिल्में कुमार में देखी होंगी उस समय फिल्म के आकर्षण के अलावा समोसे भी बहाने होते थे कुमार जाने का।
आज जब समोसा खाया तो कितनी ही यादें चलचित्र की माफिक दिमाग़ से गुजर गई। जो दूसरी फिल्म मुझे याद आती है वो है लैला मंजनू ऋषि कपूर और रंजीता वाली। समोसे तब भी खाएं थे। उस समय शायद 10 पैसे का था समोसा और फिल्म का टिकट आता था 3 रूपए का।
आज यह समोसा मिलता है 8 रूपए में स्वाद वही पिसा हुआ आलू का काला पेस्ट काले नमक का इस्तेमाल थोड़ा खटास लिए हुए, मोटी पपड़ी अधिक सीका हुआ कुरमुरा सा, आया ना मुंह में पानी क्या करे ऐसा ही है कुमार का समोसा।
अब बरेली का जिक्र हो रहा है तो समोसे से थोड़ा आगे बढ़ जाते है। मुझे बड़ी हैरत है जितने भी एकल सिनेमा हॉल है सभी बंद हो गए है या बंद होने की कगार पर है मेरी समझ से परे है क्यों पीवीआर या किसी अन्य मल्टीप्लेक्स ने कोई पहल नही की। की तो होगी लेकिन बात क्यों नहीं बनी पता करता हूं ।
कभी बरेली की शान समझे जाने वाले थियेटर प्रभा और प्रसाद बाहर से ऐसी स्थिति में नहीं लगते कि अंदर जाने की हिम्मत हो पाएं । नवेल्टी, इंपीरियल, तारा, कमल जैसे सिनेमहाल बंद हो चुके है। एक समय था जब एक किलोमीटर के क्षेत्र में 6-7 सिनेमा हॉल थे ।
मुझे याद है पहले अमर उजाला में इश्तेहार छपता था तो पता चलता था कौन सी फिल्म लगी है अब वो सब बंद हो चुका है शायद ही कोई इश्तेहार सिनेमा हॉल के आते हो।
मुझे इस बार बड़ा आश्चर्य हुआ पूरी बरेली सिर्फ छोटे बड़े अस्पतालों क्लीनिक से भरी पड़ी है संख्या इतनी अधिक है कि मुझे लगता है इतने मरीज नही होंगे जितने क्लीनिकों की संख्या है।
कोई नया व्यक्ति पहली बार बरेली आएं तो डर ही जाएं किस बीमार शहर में आ गया। कहते भी है न आप क्या चाहते है बरेली का आम शहरी जब घर से बाहर निकलता होगा तो इन बीमार आलय को देखकर खुद को बीमार महसूस करता होगा। मजे की बात ये कि सबसे ज्यादा अस्पताल और क्लीनिक बरेली स्टेडियम वाली सड़क के इर्द गिर्द ही है।
क्या कर रहे हो बरेली वालो निकलो घरों से स्टेडियम में जाकर भागादौड़ी करो स्वस्थ रहो समोसे खायो कभी कभार जब स्वस्थ होगे तो स्वाभाविक है अस्पताल भी सप्लाई और डिमांड पर ही चलेंगे।
फिर मिलते है नई कहानी नए अनुभव के साथ।
हरीश शर्मा
मुंबई दिल्ली से
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